1. महिलाओं को प्यार करने और अस्वीकार करने का अधिकार :-
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और
मोहन एम शंतानागौदर की पीठ ने एक लड़की को परेशान करने और छेड़छाड़ के कारण आत्महत्या
के लिए बाध्य किए जाने के जुर्म में सजा पाए एक आरोपी की अपील की सुनवाई करते हुए कहा, “हमें बाध्य होकर इस
बात पर सोचना पड़ रहा है और इसकी चर्चा करनी पड़ रही है कि इस देश में महिलाओं को
शांति से क्यों नहीं रहने दिया जाता और उनको मर्यादापूर्ण स्वतंत्र जिंदगी क्यों
नहीं जीने दी जाती। उसकी अपनी निजी इच्छा है और इसको क़ानून ने
स्वीकार किया है। इसको सामाजिक आदर मिलना चाहिए। कोई भी व्यक्ति किसी महिला को
प्यार करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। उसको इसे नकारने का पूरा अधिकार है।”
2. निजता का अधिकार
मौलिक अधिकार है :-
निजता के अधिकार के बारे में लंबी अवधि से चले आ
रहे इस बहस को अंजाम तक पहुंचाते हुए अपने इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि यह अधिकार संविधान के
अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा है। यह फैसला नौ जजों की पीठ ने
एकमत से सुनाया। पीठ ने इस मामले में एमपी शर्मा और खड़क
सिंह मामले
में अपने फैसले को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने फैसले के जिन बातों को निरस्त किया –
*एमपी शर्मा मामले
में निजता को मौलिक अधिकार नहीं कहना खड़क सिंह मामले में
निजता को मौलिक अधिकार नहीं बताना .
*निजता का अधिकार
जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत हिस्से के रूप में संरक्षित है
3. तीन तलाक असंवैधानिक :-
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा को बहुमत (3:2) से असंवैधानिक करार
दिया। न्यायमूर्ति नरीमन और ललित ने कहा कि तीन तलाक असंवैधानिक और समानता के
अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करता है, जबकि न्यायमूर्ति
जोसफ ने कहा कि यह प्रथा शरीयत और कुरान की मौलिक मत के खिलाफ है।
4. अध्यादेश को विधायिका
के सामने पेश करना जरूरी, इसे दुबारा जारी करना
संविधान से धोखा:-
सात जजों की संवैधानिक पीठ ने कृष्ण कुमार सिंह
बनाम बिहार राज्य मामले में बहुमत से फैसला दिया कि अध्यादेशों को दुबारा जारी
कर देना संविधान के साथ धोखा और विधाई प्रक्रिया को बाधित करना है। कोर्ट ने कहा
कि राष्ट्रपति का अनुच्छेद 123 और राज्यपाल का अनुच्छेद 213 के तहत अध्यादेशों
से सहमति जताना न्यायिक पुनरीक्षण से परे नहीं है। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने
बहुमत के फैसले में कहा कि ऐसा करना जरूरी है जबकि न्यायमूर्ति एमबी लोकुर ने कहा
कि यह निर्देशात्मक प्रकृति का है। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि वे इन
दोनों ही अनुच्छेदों की व्याख्या के मामले को संसद/विधायिका के लिए खुला छोड़ रहे
हैं।
5. अवयस्क पत्नी के साथ
यौन संबंध बलात्कार है :-
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने कहा कि 18 साल से कम उम्र की
पत्नी (अवयस्क) के साथ यौन संबंध उसके साथ बलात्कार है। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता
ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 198(6) 18 साल से कम उम्र की
पत्नियों के साथ बलात्कार के मामले में प्रयुक्त होगा इस मामले पर संज्ञान इसी
धारा के अनुरूप लिया जाएगा। कोर्ट ने आपराधिक क़ानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 द्वारा संशोधित
आईपीसी की धारा 375 (जो कि बलात्कार को परिभाषित करता है) के दो
अपवादों का भी जिक्र किया जो इस तरह के यौन संबंधों की इजाजत देता है। इन मामलों
में सहमति से यौन संबंध के लिए उम्र की सीमा को 15 से बढ़ाकर 18 कर दिया गया है।
6. धर्म/जाति के नाम पर
वोट मांगना :-
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले
में कहा कि धर्म, जाति या सम्प्रदाय के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट
आचरण है और इस तरह के उम्मीदवार के चुनाव को इस आधार पर रद्द किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला 4:3 से दिया। पीठ ने
जनप्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 123(3) की व्याख्या करते हुए कहा, “हम इस बहस में नहीं
जाएंगे कि हिंदुत्व क्या है और इसका अर्थ क्या है। हम 1995 के फैसले पर भी
पुनर्विचार नहीं करेंगे और इस समय हिंदुत्व या धर्म की जांच भी नहीं करेंगे। इस
समय हम अपने को उन्हीं मुद्दों तक सीमित रखेंगे जो हमारे सामने में उठाया गया है।
हमारे सामने जो बातें रखी गई हैं उनमें “हिंदुत्व” का कोई जिक्र नहीं है। अगर कोई
इस बारे में बताता है कि “हिंदुत्व” का जिक्र है, तो हम उसकी बात
सुनेंगे। हम इस समय हिंदुत्व के मुद्दे में नहीं जाएंगे।
7. निर्भया मामले में
अभियुक्तों को मौत की सजा :-
सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया मामले में अभियुक्तों
की मौत की सजा को बरकरार रखा। 430 पृष्ठ के फैसले में पीठ ने कहा कि अभियुक्तों का
व्यवहार पाशविक रहा है और यह पूरी घटना किसी और दुनिया की कहानी लगती है जहाँ मानवीयता
को अपमानित किया गया है। तीन जजों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति
दीपक मिश्रा, आर बनुमथी और अशोक भूषण शामिल थे, ने अभियुक्तों की
याचिका ख़ारिज कर दी और निचली अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा।
8. अवमानना के आरोप में
हाई कोर्ट जज को जेल :-
एक महत्त्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने
कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सीएस करणन को अवमानना के आरोप में छह माह की जेल की सजा
सुनाई। कोर्ट ने कहा, “हमारे विचार से
न्यायमूर्ति करणन ने न्यायालय की अवमानना की है। उन्होंने जो काम किया है उससे
कोर्ट और न्यायपालिका की गंभीर अवमानना हुई है। हम उनको छह माह के जेल की सजा देकर
संतुष्ट हैं। … अवमानना करने वाला किसी भी तरह का प्रशासनिक या न्यायिक कार्य नहीं
करेगा।” इस पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने की।
न्यायमूर्ति करणन ने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन और अवकाशप्राप्त जजों के खिलाफ
भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
9. सड़क दुर्घटनाओं को कम
करने के निर्देश :-
सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में
कमी लाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता की
पीठ ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि सड़क दुर्घटना में हर साल एक लाख से अधिक लोगों
की मौत हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि हर तीन मिनट में एक व्यक्ति की सड़क
दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। पीठ ने कहा कि दुर्घटना में मौत और अन्य वाहन
दुर्घटनाओं के कारण दिए जाने वाले मुआवजे की राशि सैकड़ों करोड़ में है।
10. एलके आडवाणी के खिलाफ
आपराधिक षड्यंत्र का मामला फिर बहाल :-
सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में बाबरी मस्जिद को
ढहाए जाने के मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और 13 अन्य के खिलाफ
आपराधिक षड्यंत्र के आरोपों को दुबारा बहाल कर दिया। अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष
संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए न्यायमूर्ति पीसी घोष और रोहिंटन नरीमन की
पीठ ने राय बरेली मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित मामलों को भी लखनऊ सीबीआई कोर्ट
को सम्मिलित सुनवाई के लिए भेज दिया। [
11. नेत्रहीन दिव्यांगों
की सार्वजनिक स्थलों तक पहुँच बनाने के लिए समय सीमा का निर्धारण
सुप्रीम कोर्ट ने नेत्रहीनों का सार्वजनिक स्थलों
तक पहुँच सुगम करने के लिए समय सीमा निर्धारित कर दी। न्यायमूर्ति एके सीकरी और
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने निर्देश दिया कि राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र और राज्य की राजधानियों में मौजूद कुल सरकारी भवनों के 50 फीसदी भवनों में
दिसंबर 2018 तक उनकी पहुँच आसान कर दी जाए।
12. स्थानांतरित याचिका
पर वीडिओ कांफ्रेंसिंग की इजाजत नहीं :-
सुप्रीम कोर्ट ने कृष्णा वेणी नगम
बनाम हरीश नगम के मामले में कहा कि अगर यह आदेश दिया जाता है कि
सुनवाई वीडिओ कांफ्रेंसिंग द्वारा हो तो यह ध्यान रखा जाना है कि 1984 के अधिनियम की भावना
को ठेस न पहुंचे क्योंकि ऐसा होता है तो न्याय का उद्देश्य परास्त होगा।
उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ
ने पक्षकार की सुनवाई में नहीं उपस्थित होने की स्थिति में एक विकल्प उपलब्ध कराया
था जो ऐसे पक्षकार के लिए था जो अपनी रिहाइश की जगह से दूर होने के कारण सुनवाई
में नहीं आ सकता। कोर्ट ने यह पूरी तरह उस कोर्ट की मर्जी पर छोड़ दिया था जहाँ
मामले को स्थानांतरित किया गया कि वह चाहे तो जो पेशी पर नहीं आ पाए ऐसे गवाहों की
पेशी को वीडिओ कांफ्रेंसिंग के जरिए रिकॉर्ड कर सकता है।
13. कानूनी उत्तराधिकारी
शिकायतकर्ता को दंडित कर सकता है :-
न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण
की पीठ ने हाई कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें उसने
कहा था कि, “अगर 1973 की संहिता यह चाहता
कि ऐसे मामले जिसमें वारंट जारी हुए हैं पर शिकायतकर्ता की मौत हो जाती है तो उस
स्थिति में शिकायतकर्ता की शिकायत को रद्द कर दिया जाए तो इस तरह के प्रावधानों का
उसमें जिक्र होता जो कि नहीं है।”
14. उपहार कांड में
दोषियों को सजा :-
सुप्रीम कोर्ट ने उपहार सिनेमा के मालिकों में से
एक 69 वर्ष के
गोपाल अंसल को एक साल के लिए जेल भेज दिया। इस सिनेमा हॉल में 1997 में आग लगने के कारण
59 लोगों
की जान चली गई थी। पर कोर्ट ने यह बात कायम रखी कि उसके भाई सुशील अंसल को पांच
माह की जेल की सजा मिलेगी और जो वह पहले ही भुगत चुका है। कोर्ट ने कहा कि इस घटना
के कारण लोगों को जिस तरह की तकलीफ़ हुई है और जो जानें गईं उसको देखते हुए अंसल पर
लगाए गए 30 करोड़ का जुर्माना पर्याप्त नहीं है और इसमें
वृद्धि करने की बात कही.
15. आईपीसी की धारा 498A का दुरुपयोग रोकने का
निर्देश :-
दो जजों की एक पीठ ने आईपीसी की धारा 498A का दुरुपयोग रोकने
के लिए दिशानिर्देश जारी किए। न्यायमूर्ति एके गोयल और यूयू ललित ने कहा कि धारा 498A को इसलिए जोड़ा गया
था ताकि पतियों या उनके रिश्तेदारों के हाथों पत्नियों के शोषण को रोका जा सके
क्योंकि कई बार ऐसी यातनाओं की परिणति महिलाओं की आत्महत्याएँ या उनकी हत्या में
होती है।
16. जमानत की अर्जी का
जल्दी निपटारा :-
शीर्ष अदालत ने अदालतों को निर्देश दिया कि वे
जमानत की अर्जी को एक सप्ताह के भीतर निपटाएं। सुप्रीम कोर्ट ने इन अदालतों में
लंबित आपराधिक मामलों को भी शीघ्र निपटाने का निर्देश दिया।
17. आयकर रिटर्न को आधार
से लिंक करने को सही ठहराया :-
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एके सीकरी और अशोक
भूषण की पीठ ने आयकर अधिनियम की धारा 139AA के तहत आयकर रिटर्न
को आधार से जोड़ने को संवैधानिक ठहराया। हालांकि, पीठ ने उस खंड को
लागू करने पर रोक लगा दिया जो आधार के निर्णय से प्रभावित होने वाला है। संविधान
पीठ के समक्ष जो मामला है उसमें आधार की वैधता को ही चुनौती दी गई है।
18. राज्य संसदीय सचिव का
कार्यालय स्थापित नहीं कर सकता :-
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति जे चेल्मेश्वर, आरके अग्रवाल और एएम
सप्रे की पीठ ने असम संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते व अन्य)
अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक करार दे दिया। पीठ ने कहा कि
अनुच्छेद 194 राज्यों को संसदीय सचिव के कार्यालय के गठन की
अनुमति नहीं देता।
19. चेक बाउंस के मामले
में अगर शिकायतकर्ता को मुआवजा मिल गया है तो मामले को बंद किया जा सकता है :-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट
एक्ट की धारा 138 के तहत किसी अभियुक्त को शिकायतकर्ता की अनुमति
के बिना छोड़ा जा सकता है अगर कोर्ट इस बात से संतुष्ट है कि शिकायतकर्ता की
शिकायतों का निपटारा हो गया है। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक क़ानून की सामान्य भूमिका
कि अपराध तभी तक कायम रहता है जब तक कि शिकायतकर्ता/भुक्तभोगी की स्वीकृति उसको
मिली होती है, धारा 138 के तहत अपराध पर लागू
नहीं होता। इसलिए CPC की धारा 258 के तहत मजिस्ट्रेट
को यह अधिकार है कि वह आरोपी को बरी कर सकता है।
20. मणिपुर में गैरकानूनी
ढंग से होने वाली हत्या पर एसआईटी :-
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ
ने एक ऐतिहासिक फैसले में मणिपुर में हो रही गैरकानूनी हत्या पर सीबीआई को एक
विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का निर्देश दिया। “…सीबीआई निदेशक को निर्देश
दिया जाता है कि वह ऐसे पांच अधिकारियों का समूह बनाए जो कि…मामलों से जुड़े
रिकॉर्ड की जांच करें और जरूरी एफआईआर दायर करें और 31 दिसंबर 2017 तक इस जांच को पूरी
कर लें, चार्ज शीट तैयार करें और जो भी आवश्यक हो करें।
पूरी प्रारम्भिक तैयारी जांच आयोगों, या न्यायिक जांचों
या गुवाहाटी या मणिपुर हाई कोर्ट या फिर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी)
द्वारा पहले ही की जा चुकी है। हम यह पूरी तरह विशेष जांच दल पर छोड़ते हैं कि इस
बारे में क़ानून के तहत जमा की गई सूचनाओं को वे किस तरह प्रयोग करते हैं ,हम मणिपुर सरकार से
उम्मीद करते हैं कि वह इस जांच दल को पूरा सहयोग देगी। हम यह भी उम्मीद करते हैं
कि इस जांच दल को भारत सरकार पूरा सहयोग देगी ताकि वह बिना किसी रुकावट के समय पर
जांच पूरी कर सके। सीबीआई के निदेशक टीम के सदस्यों का चुनाव करेंगे और इसके गठन
के बारे में हमें दो सप्ताह के भीतर बताएंगे।”
21. हर लेखक को अपना
विचार पूरी स्वतंत्रता से रखने का मौलिक अधिकार प्राप्त है :-
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और
डीवाई चंद्रचूड़ ने प्रोफ़ेसर कंचा इलैया की पुस्तक “सामाजिका स्मग्लुर्लू” पर प्रतिबन्ध
लगाने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया। विचारों की स्वतंत्रता को लेखक का मौलिक
अधिकार बताते हुए कोर्ट ने कहा, “जिस तरह की यह पुस्तक है वैसी पुस्तक पर
प्रतिबन्ध लगाने की माँग को बहुत ही सख्ती से देखने की जरूरत है क्योंकि हर लेखक
को अभिव्यक्ति और अपनी बात पूरी तरह से कहने की स्वतंत्रता है। किसी एक लेखक की
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाने को हल्के में नहीं लेना चाहिए।”
22. 10 साल तक की जेल वाले अपराधों में आरोपी 60 दिनों के बाद जमानत का हकदार
:-
सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 से यह फैसला दिया कि
ऐसा अपराध जिसमें किसी को अधिकतम 10 साल की सजा हो सकती
है और अगर पुलिस उसकी गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर उसके
खिलाफ चार्ज शीट दाखिल करने में विफल रहती है तो आरोपी आपराधिक प्रक्रिया संहिता
की धारा 167(2)(a)(2) के तहत डिफॉल्ट जमानत का हकदार है।
23. जेल सुधार को लेकर ऐतिहासिक दिशानिर्देश :-
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ
ने जेलों में सुधार के लिए बहुत ही अहम दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने जेलों में
होने वाले अप्राकृतिक मौतों के बारे में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो
(एनसीआरबी) के आंकड़ों और राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग द्वारा जेलों में होने वाली
आत्महत्याओं के बारे में उपब्ध कराए गए आंकड़ों पर गौर किया। इस तरह के तथ्यों और
आंकड़ों को रेखांकित करते हुए कोर्ट ने देश भर के जेलों में कैदियों की हालत को
सुधारने के लिए इसमें भारी परिवर्तन किए जाने की जरूरत पर जोर दिया ताकि जेलों में
कैदियों की अप्राकृतिक मौतों को रोका जा सके। में कमी लाइ जा सके।
24. सीजेआर की याचिका 25 लाख के जुर्माने के साथ
खारिज :-
इस फैसले के लिए शायद 2017 में सुप्रीम कोर्ट
की सर्वाधिक आलोचना हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कैंपेन फॉर जुडीशियल अकाउंटिबिलिटी एंड
रिफॉर्म्स द्वारा मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा तथाकथित रूप से घूस देने के
मामले की एसआईटी जांच की मांग ख़ारिज कर दी और उस पर 25 लाख का जुर्माना भी
लगाया। कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट कामिनी जायसवाल और प्रशांत भूषण द्वारा मुख्य
न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर लगाए आरोप “अपमानजनक और अवमाननापूर्ण” है।
25. एडवोकेटों की
वरिष्ठता के बारे में दिशानिर्देश :-
एडवोकेट को वरिष्ठ मानने की प्रक्रिया को
सुव्यवस्थित करने के लिए कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए। उसने कहा कि अब से
सुप्रीम कोर्ट से जुड़े सभी मामलों को प्रारम्भिक रूप से एक समिति देखेगी जिसकी
अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश करेंगे। दो वरिष्ठतम जज और अटॉर्नी जनरल इस समिति के
सदस्य होंगे जो बार से एक सदय का चुनाव करेंगे।