Monday, April 30, 2012

How to download Admit Card | M.P. Civil Judge Class-2 (Entry Level) Pre Exam 2012






Preliminary Examination of Madhya Pradesh Civil Judge Class-2 (Entry Level) Examination 2012 will be held on 06th May 2012. High Court of Madhya Pradesh has uploaded the Admit Cards of the Eligible Candidates for Madhya Pradesh Civil Judge Class-2 (Entry Level) Preliminary Examination 2012. 

To Download the Admit Cards follow the steps given below-
Log on to website of MPONLINE at the link https://www.mponline.gov.in/
Click the Citizen Services.

Saturday, April 28, 2012

अब 18 साल से कम उम्र यानी नाबालिग के साथ सेक्स करना बलात्कार माना जाएगा।

अब 18 साल से कम उम्र यानी नाबालिग के साथ सेक्स करना बलात्कार माना जाएगा। भले ही सेक्स आपस में सहमति से ही क्यों न किया गया हो।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 26 अप्रैल को ‘द सेक्सुअल ऑफेंसेज अगेंस्ट चिल्ड्रन बिल (THE PROTECTION OF CHILDREN FROM SEXUAL OFFENCES)’ पर चर्चा करते हुए मंजूरी दे दी।
बिल में नाबालिग के यौन उत्पीड़न, यौन अपराध और शील भंग के दोषी शख्स को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। कैबिनेट ने कामकाजी महिलाओं के खिलाफ शोषण किए जाने के मामले में भारी वृद्धि को देखते हुए उसके बिल को जीओएम के पास सिफारिश के लिए भेज दिया है। सरकार के मुताबिक इसी सत्र में कानून पास करने की कोशिश की जाएगी।
यह पहला मौका है जब खासतौर पर बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के लिए अलग से कानून लाया जा रहा है। मौजूदा कानून में इनके लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है। बिल के दायरे में बच्चों की तस्करी और चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को भी लाया जाएगा।
बिल से, सहमति की उम्र 16-18 साल के वाक्यांश  को संसदीय पैनल की विवादास्पद सिफारिश के बाद हटा लिया गया है। इसका मतलब है कि 18 साल से कम उम्र के शख्स के साथ सेक्स अब अपराध की श्रेणी में माना जाएगा। पहले 16 साल की उम्र को सहमति का उम्र माना जाता था।
कुछ प्रावधानों पर कई मंत्रियों के असंतोष के चलते कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) विधेयक में संशोधन को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिल पाई।

Sunday, April 8, 2012

इलाहाबाद राजकीय बाल सुधारगृह में हो रहा बच्चियों के साथ बलात्कार

Bal Adhikal
 आज फिर समाज को दूषित और विद्रूपित करने वाला तथा इलाहाबाद राजकीय बाल सुधार गृह में हो रहा बच्चियों के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया है इलाहाबाद जैसे महानगर क्षेत्र में ऐसा मामला निन्दनिये है. यंहा राजकीय बाल गृह में 3 बच्चियों के साथ दुराचार का मामला सामने आया है ! इस पुरे मामले में बालगृह में ही कम करने वाले एक चौकीदार की संलिप्तता पाई गयी है ! जिसकी अभी तक हुई जाँच में पुष्टि हो गई है ! जिन 3 बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया गया है उनमे से 2 की मेडिकल परिक्षण में दुष्कर्म की पुष्टि हो गई है जबकि एक अन्य का मेडिकल परिक्षण बाकि है 
   इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी बाल गृह की अधिछिका  उर्मिला गुप्ता को शिकायत का इंतजार है उन्होंने आगे ये भी कहा की अन्य बच्चियों का मेडिकल परिक्षण तभी कराया जायेगा जब वह खुद शिकायत करेगी  किन्तु अधिछिका  साहिबा ये भूल गयी है की जिन बच्चियों से ये शिकायत की आपेछा कर रही है वो 10 वर्ष से भी कम उम्र की है ! जिस राजकीय बाल गृह की वो आधीछिका है यही 3 बच्चियों  के साथ यह घिनौना वारदात शायद लम्बे समय से हो रहा हो  और उन्हें इनकी भनक तक नही है जो की  नामुनकिन है !                                       
                     इलाहाबाद  हाईकोर्ट ने  मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी है तथा इलाहाबाद के जिलाधिकारी से ये पूछा है की आरोपी कर्मचारी की बर्खास्तगी समेत अधिछिका  जिनकी नाक के नीचे ऐसी शर्मनाक घटना घटित हुई उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी ! न्यायलय ने प्रमुख सचिव महिला व् बाल कल्याण विभाग उत्तरप्रदेश  से व्यक्तिगत हलफनामा मांगते हुए पूछा है की सरकार द्वारा संचालित राज्य के अन्य बाल गृहों में अन्तः वासियों की सुरक्षा और संरक्षा के संबंध में क्या कार्यवाही की गयी है ! न्यायलय ने ये भी पूछा है की इससे पहले ऐसे अपराध करने वाले कर्मचारियो के खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी ! 
                                   ऐसे मामले की गंभीरता को देखते हुए तथा वर्तमान मामले को गंभीरता से लेते हुए हमारी संस्था  Legal Freedom  तथा हमारी साथी संस्था PUHR (People Union  for Human Right ) ने मिलकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक PIL दाखिल करने का निर्णय लिया है ! हम उच्च न्यायालय से यह मांग करेगे की राज्य के अन्य राजकीय बाल गृहों की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक जाँच दल गठित करे तथा राज्य के अन्य बाल गृहों में एक उचित नियुक्ति प्रक्रिया का पालन कराये! 
mahila adhikar








Blog post by- ABHISHEK ANAND

 Legal freedom "a firm for legal solution"
हमसे हमारे  इ-मेल पर संपर्क किया जा सकता है - abhishek@legalfreedom.in



Article typed  by - mr. Aditya singh

फांसी को फांसी (दया याचिका की आड़ में कानून का मजाक )


आज फिर से फांसी को फांसी देने की बात जोरों पर है! लगता है अब ये भी पुरवा हवा के साथ उठाने वाले दर्द की तरह समय-समय पर उठने लगा है I अब दया याचिकाए राजनीति करने की नया हथियार बन गई है I अब तक तो अयोध्या, बाबरी , गोधरा जैसे मुद्दे ही राजनीतिक दलों के लिए राजनीति के सहज मुद्दे हुआ करते थे पर अब कुछ सालों से ये फांसी  जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी राजनीति करने से  बाज नहीं आ रहे है I
           भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के हत्यारे मुरुगन की फांसी की सजा वर्षो बाद भले ही रद्द हो गई, पर आज भी संसद पर हमले के दोषी अफजल या फिर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह समेत लगभग डेढ़ दर्जन दया याचिकाए भारत के राष्ट्रपति के पास दया के आश में लंबित है (अब बलवंत सिंह की फांसी की सजा को भी 16  सालों बाद माफ़ कर दिया गया है.)I पता नहीं ये कैसी दया है जो 16 -16  सालों तक दया की बाट खोज रही है! उसके बाद इतने सालों बाद अगर किसी को दया  मिलती भी है तो ठीक वैसे ही जुर्म के लिए सजा काट रहे कितने ही अपराधी इस दया रूपी महाकृपा से महरूम रह जाते है, और वो आज भी हर रोज अपने को फांसी पर लटकते हुए पाते है पर मौत है की आती नहीं I
          यहाँ बलवंत सिंह राजोआना के मामले पर थोड़ी चर्चा जरुरी है, ये मामला थोड़ा अलग है, इसके पक्ष में पंजाब के मुख्यमंत्री समेत दुसरे दल भी खड़े होगये है वैसे ही अफजल गुरु के मामले में जम्मू कश्मीर के कुछ दल आवाज उठाने की कोशिश कर चुके है! आतंकियों के पक्ष में राजनीतिज्ञों की इस मुहिम ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है I इससे इस देश में कानून का राज होने की बात भी संदेह के घेरे में आ गई हैI ऐसा इसलिए हो रहा है क्योकि दया याचिकाओ के आड़ में एक गंभीर राजनीति का खेल चल रहा है I
           राजीव गाँधी के हत्यारे के मामले में कांग्रेस का रुख देखा जाए या  अफजल के मामले में जो हो रहा है उसे देखा जाए, लेकिन सरकार को इससे परे होना चाहिए I सरकार किसी भी कीमत पर आतंकी या हत्यारों की फांसी रोकने में सहायक नही हो सकती है I
                                                           यह सरकार की विफलता कही जा सकती है देश में आपराधिक न्याय प्रणाली ध्वस्त हो रही है, या ये कहा जाए ध्वस्त होगई है I यहाँ पहले ही किसी मामले को अंतिम फैसले तक पहुचने में सालों साल का वक़्त लग जाता है और जब अंतिम फैसला फांसी के रूप में आता है तो राष्ट्रपति के पास दया याचिका !  ये याचिका फाइलों  में वंहा सालों तक पड़ी रहती है I तब तक अपराधी के खिलाफ लोगो का गुस्सा  धीरे-धीरे कम हो जाता है I इसके बाद राजनीतिक पार्टियों  को राजनीति का रोटी सेकने का अवसर मिल जाता है I यह कहानी  बलवंत सिंह के मामले में भी दोहराई जा रही है इसको 16 साल बाद फांसी दी जा रही है ! जो की अपने आप में एक भद्दा मजाक है I
            आतंकी और हत्यारों की दया याचिकाए कानून के साथ मजाक हैं ? जब किसी गुनाहगार का गुनाह साबित हो गया है सुप्रीम कोर्ट तक ने उसे दोषी करार दिया है फिर उसे माफ़ करने का औचित्य क्या है? माफ़ ही करना है तो सभी फांसी के सजा पाए अपराधियों को माफ़ कर दो ! कुछ लोगो को माफ़ी और कुछ लोगो को फांसी पर चढ़ाना कहा का न्याय है? या तो यहाँ माफ़ भी चुन -चुन कर किया जाता है ! जब नारायणन राष्ट्रपति थे तो आन्ध्र प्रदेश में 18 लोगों को जिन्दा जलाने वाले की फांसी की सजा माफ़ कर दी गई थी क्यों.? क्या उन 18 लोगो के साथ हमारी दया-याचिका ने न्याय किया ?
                                           यंहा सवाल उठता है की दया याचिकाओं का मतलब क्या है अगर देना ही है तो दें ! अन्यथा फांसी के सजा को ही हटा दिया जाए?
                       किसी मामले की जाँच ,विचारण,अपराधियों  तक पहुचने में उनके खिलाफ सबूत जुटाने में पहले ही काफी समय और धन खर्च होता है I इसके लिए जाँच अधिकारी रात दिन एक कर के मेहनत-मसकत करते है I इसके बाद अपराधी को सजा दिलाने के लिए जाँच अधिकारियो को कई सालों तक अदालत का चक्कर काटना पड़ता है और अंततः अपराधी को सजा मिलने पर जाँच अधिकारियो को अपने मेहनत पर गर्व होता है ! पर दया याचिकाए एक झटके में उनकी मेहनत पर  पानी फेर देती है I
      अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करने वाले आतंकियों को अमेरिका ने एक साल के अन्दर सजा दे देता है I पर हमारे यंहा सरकार संसद पर हमला करने वाले आतंकी को अदालत से मिली सजा को देने की हिम्मत नही जुटा पाती है ! ये  हमारी राजनीति कमजोरी को दर्शाता है तथा हमारे जाँच अधिकारियो के मनोबल को कमजोर करता है ,सरकार का मजाक बनाता है और साथ ही कानून का मजाक बनाता है ! अपराधी यदि आतंकी है या प्रभावशाली है तो उसका कुछ नही होगा, होगी तो सिर्फ राजनीति ! !!!!!!!???????





Blog post and write by-  
Abhishek Anand 
legal freedom "   a firm for legal solution"

Typed by - Aditya singh