दोस्तों, सामाजिक न्याय और मानवाधिकार के बारे में बात करनें से पहले हमें न्याय क्या है ? इस शब्द से परिचित होना होगा।
न्याय का तात्पर्य प्रक्रिया भी है और परिणाम भी। पर अपने दोनों अर्थों ने यह उपयुक्तता की अवधारणा से जुडा हुआ है। उपयुक्तता से हमारा अभिप्राय इस बात से है कि जो भी निर्णय दिया जा रहा है वह व्यक्ति और परिस्थियों को ध्यान मे रख कर किया जाए और उसमे किसी भी तरफ़ पक्षपात न हो।
मानवाधिकारों एवं समाजिक न्याय के संदर्भ में जब भी भारत की बात होती है तो मानवाधिकारों के प्रति भारत की निष्ठा संविधान के प्रस्तावना एवं इसके विभिन्न प्रावधानों में स्पष्ट देखी जा सकती है लेकिन याथार्थ के धरातल पर इन्हें सुनिश्चित करना निश्चित ही आसान नहीं दिखता। दुनियां का सम्भवत: ऐसा कोइ दुसरा देश नहीं हैं जहाँ इतनी विभाजनकारी और विविधतापूर्ण प्रवृतिया हो जितनी कि हमारे देश में हैं। यह विविधता क्षेत्र,धर्म,लिंग,जाति,भाषा आधारित है। आर्थिक और शैक्षिक स्थिति आधारित भेद भी यहाँ व्यापत है। इसके अलावा शारिरिक और इससे जुडी अनेक अक्षमताओं से ग्रस्त लोग तथा आंतरिक क्षगडों, प्राक्रितिक आपदाओं,औद्धोगिकरण आदि से बेघर हुए लोग भी हैं जिनके अधिकारों कि रक्षा जरुरी है। आर्थिक विकास एवं तिव्र नगरिकरण के परिणाम स्वरुप अन्य कई कमजोर तबके सामने है,जिनमें विस्थापन के शिकार , झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोग, औद्धोगिक श्रमिक तथा पर्यावरण प्रभाव से प्रभवित लोग शामिल हैं। इसलिये जब भारत के सन्दर्भ मे सभी नागरिकों के लिए मानवधिकार और समजीक न्याय सुनिश्चित करने की बात होती हैं तो वह एक छोटे से, सरलता से संभाले जाने योग्य इन समजातिय आबादी के मानवाधिकरो के बारे मे चर्चा नहीं की जाती ।
मानवधिकार एवं समाजीक न्याय के मामले में भारत की स्थिती एक ऐसे विद्यार्थी की है जिसकी उपलब्धियाँ कम नही हैं, लेकीन उसे अभी लम्बी यात्रा तय करनी है । वो इसलिए की यहाँ अब भी नारीयाँ सशक्तीकरण के मार्ग पर सतत अग्रसर है वही बडी तदाद मे बच्चे अब भी बुनियादी शिक्षा एवं पोषण से वंचित है और मजदुरी करने के लीए विवश है। इन सब के बीच सरकार जहाँ समवेशी विकाश सुनिश्चित करने की दिशा मे तेजी से आगे बढ़ रही है वही हमारे बीच जाति और क्षेत्रवाद आधारित विभाजन आज भी कुंडली मारे बैठा है।
लेकीन हमारी कमज़ोरियाँ चाहे जो भी हो, पर हम इस बात पर गर्व कर सकते है कि सामाजीक न्याय और मानवाधीकार सुनिश्चित करने के लिए हमरी संरचना आज भी काफी मजबुत है बस जरुरत है उसे सही तरीके से लागू करने की। न्यायपालिका मे इसे बार-बार सुनिश्चित किया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास आयोग तथा इस क्षेत्र मे कार्य कर रहे अनेको स्वयं सेवी संगठन तथा हमारी केन्द्र और राज्य सरकारे उपयोगी और अर्थपूर्ण कानुन बनाकर उन्हें लागु करने हेतू सक्रीय है। उनके प्रयास हमारी उम्मीद को आधार प्रदान कर रहें हैं।
लेकीन हमारी कमज़ोरियाँ चाहे जो भी हो, पर हम इस बात पर गर्व कर सकते है कि सामाजीक न्याय और मानवाधीकार सुनिश्चित करने के लिए हमरी संरचना आज भी काफी मजबुत है बस जरुरत है उसे सही तरीके से लागू करने की। न्यायपालिका मे इसे बार-बार सुनिश्चित किया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास आयोग तथा इस क्षेत्र मे कार्य कर रहे अनेको स्वयं सेवी संगठन तथा हमारी केन्द्र और राज्य सरकारे उपयोगी और अर्थपूर्ण कानुन बनाकर उन्हें लागु करने हेतू सक्रीय है। उनके प्रयास हमारी उम्मीद को आधार प्रदान कर रहें हैं।
आलेख ;- अभिषेक आनंद
LEGAL FREEDOM "a firm for legal solution"
New Delhi
Allahabad
Lucknow
Email-legalfreedom1950@gmail.com
- Abhishek Anand
-Santosh Singh
-Rajendra chaurashiya
-Saurabh tiwari
-Shabiya khatun
-Mohit shahay
-Preetesh Anand
No comments:
Post a Comment