आवाज
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देश के विभाजन के इतने वर्षों के उपरान्त भारतवर्ष में सबसे अधिक राजनैतिक विमर्श के केन्द्र पर रहा मुसलिम समुदाय में से मैं एक मुसलमान हूँ ! शायद ये हमारी पहचान नहीं होनी चाहिए थी। परन्तू हमारे हितों के नुमाइन्दगी के दंभ भरने वाले राजनैतिक दलों ने हमें यही पहचान दी है, वास्तव में तो हम इसी मिट्टी के ऊपज हैं, पर हमारी पहचान कहाँ खो गई आज इस लेख के माध्यम से मैं भारत में अपनी दिशा और दशा दोनो का वास्तविक प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करना चाहता हूँ।
आज भारत में 20 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले समुदाय, राजनैतिक,सामाजिक,आर्थिक भागीदारी नगण्य की स्थिती रखता है। स्वास्थय,शिक्षा,रोजगार इन तीनों ही क्षेत्रों में सर्वाधिक रिक्तियाँ इसी समुदाय में विद्यमान है, विकाश की इस धारा से कटी इतनी बड़ी अबादी के साथ हम विकसित राष्ट्र होने का ख्वाब क्यों सजोयें है ये तो समझ से परे हैं।
जब भी भारतवर्ष में मुसलमानों की चर्चा होती है तो या अयोध्या या आतंकवाद पर। दोनों के मुल मे हमारे मतों का अपने हितों के लिए राजनैतिक लाभ लेने से ज्यादा मन्तब्य किसी राजनैतिक दल का नही रहा है ये कहना अन्यायपूर्ण होगा की इस मिट्टी की उर्वरता में कमी हैं इस मिट्टी के उर्वरता से ही मुसलमान समुदाय के एक बड़े धरे ने प्रगती की है परन्तु एक बडा समुदाय जो आज भी अपने अधिकारो की बाट जोह रहा है उसके लिए उत्तरदायी कौन हैं ?
सिर्फ राजनैतिक दल या हमारे समुदाय का वह धरा जो अपने हितों की रोटियां सेक रहा है। राजनैतिक कारकों में भारत के मुसलिम समुदाय के हितों पर सबसे बड़ा कुठाराघात किया है भारत में या विश्व में होने वाले बम धमाके ये पूछ कर नही होते की इसके परिणत से कौन मर रहा है हिन्दु या मुसलिम, भारत का कोइ भी मुसलमान शायद अजमल कशाब, अफजल गुरु की नुमाइन्दगी नहीं करता है, जीतना राष्ट्र प्रेम अन्य समुदाय के दिलो में है उतना ही प्रेम हमारे दिलो में भी हैं।
पर हमारे राष्ट्रप्रेम पर प्रश्नचिन्ह क्यों लगाया गया आतंकवाद विषयक कोई राजनैतिक परिचर्चा मुसलिम आतंकवाद पर क्यों सिमट गई यही एक महत्वपुर्ण कारक हैं? जिसके प्रश्नो के उपादान स्वरुप इस समुदाय में भटकाव पैदा करती है
कोई भी राजनैतिक दल मुसलिम शिक्षा,स्वास्थ्य को अपना राजनैतिक एजेन्डा क्यों नही बनाता? बल्कि भारत के सन्दर्भ में बुनियादी तौर पर सभी समुदायों की भागीदारी में ही राष्ट्रहित है इसलिए हमें अलग से कुछ न देकर भारतीय होने के कारण समान विकाश के अवसर प्रदान करें न की हमारे उपर राजनैतिक चरित्र पे सभी प्रयोग जिनकी परिणत में भारतीय सामाजिक संरचना के प्रत्येक क्षेत्र मे हमें दूर कर दिया हैं। अब मैं अपने विचारों चन्द अलफाजो में व्यक्त करता हूँ :-
बटवारा
बटवारा हुआ भटकाव हुआ
दोनों ही मुल्कों में
किसी न किसी हितों का टकराव हुआ
जिन मकां को दोनों ने सदियों में बनाया हैं
फ़सादों में उन्हें पल भर में ही खाख किया है।
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हिन्द
हिन्द नाम नहीं कोई मजहबी
ये तो हमारी सरजमी है
ना हिन्दु की न मुसलमान की
ये तो धरा है मानवीयता की पहचान।
आतंकवाद
आज आदमी की शक्ल में
कुछ साये में हमें डराने लगे
खुदा का नाम लेकर
हमें हमारी पहचान बताने लगे
न मुल्क देखे न देखे मजहब
न देखे साधु और इमाम
ये तो हैं सांसों के सौदागर
ये करते बस कत्ले आम
न माँ की ममता न बहन का प्यार
न पत्नी पीडा न जुड्ता परिवार
न कोई इनका अपना
न कोई इनके साथ
जन्म हुआ इन्सानों में
नहीं मिला मनवीय संस्कार
बचपन में इनके मिट्टी के मकान थे
ये भी डरकर छुप जाते थे माँ के आँचल में
या सिर्फ़ मानवता के गुनहगार थे ?
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अनसुलझा सवाल
एक अनसुलझा सवाल
हुकुमत को जगाने का ?
हिन्दु मुसलमान नही
इंसान बनाने का ?
अतीत की समृधी को
वर्तमान में बनाने का ?
राम और अल्लाह दोनों को
राष्ट्र की पहचान बनाने का ?
राजनैतिक तिलस्म में
एक राष्ट्र समान नागरिक
दोनों को लाने का ?
आतंक हो या धर्म हो
दोनों से उपर राष्ट्र को लाने का ?
विकास के नव पथ पर
तिरंगें के दो सिरों में
शान्ति एकता लाने का ?
एक अनसुलझा सवाल
मानव अधिकार- विधिक अधिकारों को
इस राष्ट्र के हर व्यक्ति तक पहुँचाने का,
एक अनसुलझा सवाल
इस व्याथित हृदय को
राष्ट्र की पहचान दिलाने का ?
आलेख -
सौरभ तिवारी
इलाहबाद ,
Email- adv.saurabhtiwari1986@gmail.com
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