माँ ! यूं न दुत्कारों मुझे,
मुझे धरा पर आने दो ,
मैं लहु हूँ तेरा,
मेरा साकार रुप बन जाने दो।
मैं अंग हूँ तुम्हारा,
पापा का प्यार समेटे,
गर्भ मे पलते-पलते,
मैं न कोइ प्रतिकार करुंगी,
न होंगी कोई ख्वाइशें,
मांग रही हूँ आँचल में एक कोना,
मेरी आँखों को खुल जाने दो।
मैं उठाऊँगी बोझ तुम्हारा,
आँसू तेरे अपनाऊगी,
क्या खता है हमारी,
जो वक्त से पहले दफ़नाओगी।
कैसे होगा पूर्ण संसार,
मैं अगर ना आऊगी,
कैसे आयेगी अँगंन में बहू तेरे,
यदि मैं हर गर्भ में मर जाऊँगी ।
www.legalfreedom.in
No comments:
Post a Comment